हलाक़ में अटकी रहे वो अल्फाज़ हो तुम,
ज़िन्दगी भर भुला ना सकें वो ख्वाब हो तुम।
उम्रें गुज़र जाएंगी शायद मुलाक़ात की उम्मीद में,
रब से जो मांगी जाए वो दरख्वास्त हो तुम।
हलाक़ में अटकी रहे वो अल्फाज़ हो तुम।
ऊंची से ऊंची दीवारें पार की हमनें
फिर भी तुझ तक ना पहुँच पाए, क्या राज़ हो तुम ?
चहचहाती भीड़ में खामोशियाँ हूँ ढूढ़ता
शोर में जो सुन ना पाएँ शायद वो आवाज़ हो तुम।
हलाक़ में अटकी रहे वो अल्फाज़ हो तुम।
© Vidya Venkat (2019)
Very nice