कभी सूखी पाती से पूछना उस ऊंची डाली का छोह।
बिछड़ कर पीले होने पर वो हरियाली का मोह।
तन सूखा है मन सूखा है पर जीवित उसकी आशा है।
पड़ी हुई है गुमसुम सी पर याद अभी तक ताज़ा है।
© Vidya Venkat (2006)
कभी सूखी पाती से पूछना उस ऊंची डाली का छोह।
बिछड़ कर पीले होने पर वो हरियाली का मोह।
तन सूखा है मन सूखा है पर जीवित उसकी आशा है।
पड़ी हुई है गुमसुम सी पर याद अभी तक ताज़ा है।
© Vidya Venkat (2006)