I’m perturbed after reading the news about the war-like situation brewing between India-Pak and the cheering of it in some quarters. Wrote this poem:
*अमन की आशा*
जंग का ऐलान करके
हैं खड़े सीना तान के
छप्पन इंच चौड़ा हुआ है
वीरों के रक्तदान से
ऐ वतन के वासियों
ना जंग से यूं प्यार कर
दे जवानों की बलि यूं
इस मिट्टी को तू लाल कर
याद करना उस छवि को
जिनमें विधवाएं कईं
आँसुएँ पोछ रही जो
वीरों की माताएं कईं
जंग का करके जश्न यूं
ऐ वतन के वासियों
ना अमन को कर ख़त्म यूं
ऐ वतन के वासियों
© Vidya Venkat (2019)