सोचा तुम पे लिखूँ कवितापर शब्द नही मिलते हैैं।वो सूर्योदय सा तेजस,जो तुम्हारे चेहरे से छलक रहा था,उसे अपनी मन की आँखों सेनिहार रही हूँ ।कैसा अनुभव था वहजिसे मैं व्यक्त नही कर पा रही हूँ?शायद मेरी कल्पना की आंच तुम्हारी उस उज्जवलता के सामनेधीमी पड़ गई है।सोचा तुम पे लिखूँ कवितापर शब्द ही नहीContinue reading “सोचा तुम पे लिखूँ कविता”
Monthly Archives: January 2021
ज़िंन्दा हूँ
मेरी कविताओं को केवल कविताएँ मत समझो।ये इस बात का सबूत है कि साँसें चल रही हैं,रगों में खून दौड़ रहा है, और धड़कनेें बरकरार हैं ।मान लो लिख रही हूँ तो ज़िंन्दा हूँ ।अगर इस कलम का सहारा ना होतातो ना जाने क्या होता… © Vidya Venkat (2020)
Acceptance
I wish I could be like these trees that display their naked branches, shorn of leaves, with pride and dignity, and a quiet conviction that things will not always remain this way… © Vidya Venkat (2021)
पोशीदा
रूठकर चाँद यूँ फलक में कहीं खो बैठा,जैसे नादान परिंदेछुपे रहते हैैं दरख्त शखों पर।जितना भी कर लो जतन अब इन्हे रिझाने में,पोशीदा रहना ही गुस्ताख चाँद की खूबी है। © Vidya Venkat (2021)
The Invasion
© Vidya Venkat (2021)