
नेता है जैसे कोई नयी तरकारी
आज ताज़ी तो कल बासी
है ये चमचा सरकारी
जो पटाता है भाषण देकर दुनिया सारी
ये है वोट मँगा भिखारी
इसने बड़ी बड़ी मुश्किलें खड़ी की
जैसे बाबरी,
अनपढ़ भी बन जाते नेता
जैसे राबरी…
सर पर टोपी और गले में माला
पहनकर करते हैं ये गड़बड़ घोटाला
अरे लोगों इनकी बहकावी बातों में न आना
अपना वोट सोच समझकर डालना
वर्ना इस देश की हो जाएगी बर्बादी
ख़ाक में मिल जाएगी पछत्तर वर्ष की आज़ादी।
Ⓒ Vidya Venkat (1998)
[I originally wrote this poem at the age of 13 ahead of the general elections that year in 1998. I’ve tweaked it slightly to make it relevant for present times.]