गुज़ारिश

नीले आसमान के तले,सवेरा नींद से जागा है।सूर्य की नर्म किरणों सेओस की बूंदे द्रवित हुई।ऐसे ही कभी एक दिनतुम आना मेरी जिंदगी में।सर्दी है, रात बहुत लंबी हो गई… © Vidya Venkat

आज़ाद

जिन्हे कल तक मेरी बातों से एतराज़ थाउन्हे आज मेरी ख़ामोशी से नाराज़गी है।मैं आज़ाद हूँ, मेरी आवाज़ भी अबकिसी की मर्ज़ी का मोहताज नही। © Vidya Venkat

फितरत

जिन्हे ये जहान बुरा करार करता हैउनमें होती है खूबियां कई।और जो खुद को अच्छा बतलाते हैंउनमें होती है खामियां कई। ओ दुनियावालों किसी की बातों में आकरमत करना दूसरों को खुद से परे।कहीं ऐसा न हो, अच्छाई और बुराई के बीचकशमकश में इंसान अपनी फितरत खो बैठे… © Vidya Venkat

सोचा तुम पे लिखूँ कविता

सोचा तुम पे लिखूँ कवितापर शब्द नही मिलते हैैं।वो सूर्योदय सा तेजस,जो तुम्हारे चेहरे से छलक रहा था,उसे अपनी मन की आँखों सेनिहार रही हूँ ।कैसा अनुभव था वहजिसे मैं व्यक्त नही कर पा रही हूँ?शायद मेरी कल्पना की आंच तुम्हारी उस उज्जवलता के सामनेधीमी पड़ गई है।सोचा तुम पे लिखूँ कवितापर शब्द ही नहीContinue reading “सोचा तुम पे लिखूँ कविता”

ज़िंन्दा हूँ

मेरी कविताओं को केवल कविताएँ मत समझो।ये इस बात का सबूत है कि साँसें चल रही हैं,रगों में खून दौड़ रहा है, और धड़कनेें बरकरार हैं ।मान लो लिख रही हूँ तो ज़िंन्दा हूँ ।अगर इस कलम का सहारा ना होतातो ना जाने क्या होता…  © Vidya Venkat (2020)