सोचा तुम पे लिखूँ कविता
पर शब्द नही मिलते हैैं।
वो सूर्योदय सा तेजस,
जो तुम्हारे चेहरे से छलक रहा था,
उसे अपनी मन की आँखों से
निहार रही हूँ ।
कैसा अनुभव था वह
जिसे मैं व्यक्त नही कर पा रही हूँ?
शायद मेरी कल्पना की आंच
तुम्हारी उस उज्जवलता के सामने
धीमी पड़ गई है।
सोचा तुम पे लिखूँ कविता
पर शब्द ही नही मिलते हैं…
© Vidya Venkat